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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2794
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 12

पंचमार्क सिक्के तथा मौर्यों की सिक्का प्रणाली

(Punchmark Coins and Mauryan Coin System)

प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।

अथवा
आहत मुद्राओं की प्राचीनता का विवेचना कीजिए तथा उनके प्रमुख प्रकारों का निर्देश कीजिए।
अथवा
आहत मुद्राओं की सामान्य विशेषताओं का विवरण दीजिए।
अथवा
आहत मुद्राओं के तिथिक्रम की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
अथवा
आहत सिक्कों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. आहत मुद्रा की प्राचीनता बताइये।
2. पंचमार्क सिक्के या आहत मुद्राओं पर अंकित चिह्नों को बनाइए।
3. पंचमार्क सिक्कों पर विभिन्न चिन्हों के अंकन के विषय में बताइए।
4. आहत मुद्रा में अंकित चिन्ह क्या थे? चित्र सहित समझाइये।
5. आहत सिक्कों को तैयार करने की विधि क्या थी?

उत्तर-

आहत मुद्रा की प्राचीनता

संसार में मुद्रा की उत्पत्ति का मूल कारण आर्थिक स्थिति ही मानी गयी है भारत वैदिक युग से ही वणिक खेती का काम करता था तथा अनाज पैदा कर समाज की आर्थिक स्थिति में सुधार लाता था। उत्तर वैदिक काल में ही विभिन्न प्रकार के व्यवसाय सामने थे और मृतकार रथकार, स्वर्णकार तथा कर्मकार इत्यादि वर्ण कार्य में लगे थे। पाणिनी ने कृषि द्वारा आर्थिक समस्या के हल का मार्ग बतलाया है। वैदिक समाज में ही जंगल काटने तथा वाण तैयार करने के निर्मित लोहे का व्यवहार आरम्भ हो गया था। जातकों में व्यापार तथा वाहन का उल्लेख मिलता है। कृषकों के लिए औजार के अतिरिक्त पशुधन तो राष्ट्रीय धन था और राष्ट्र की इस सम्पत्ति को बचाने के लिए भगवान बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी तथा यज्ञ को समाप्त किया। जीवों की हत्या बन्द होने से पशुधन का ह्रास रुक गया। बौधायन धर्म सूत्र में दूध वाली गाय की हत्या करने वाले को चान्द्रायण व्रत करने का विधान मिलता है। इतना ही नहीं शासक की कृषि भूमि की सीमा बंध गई थी।

इसी के साथ धातु के सिक्कों का भी उल्लेख है, जिनके सहारे व्यापार में अधिक सुविधा तथा सरलता प्राप्त हुई। कहने का तात्पर्य यह है कि व्यापार की सुविधा के लिए सिक्के का निर्माण किया गया। वैदिक साहित्य में निष्क तथा शतमान का वर्णन है, किन्तु अभी तक दोनों अलभ्य हैं, परन्तु सिक्कों की स्थिति में स े नहीं किया जा सकता।

वैदिक एवं संस्कृति साहित्य के आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि भारत में सोने के सिक्के बनते थे। प्रागैतिहासिक (मोहनजोदड़ो) की खुदाई से सोने के आभूषण उपलब्ध हुए हैं। सम्भव है स्वर्ण मुद्रा को भी धन के रूप में संग्रह करते रहे हों। चाँदी विदेश से आया करती थी। अतएव सोना-चाँदी का 1: 9 का अनुपात था।

नाम, धातु एवं तौल

भारत के राष्ट्रीय सिक्के का नाम पण माग गया है, जो कर्ष (बीज) द्वारा तौलने के कारण कार्षापण कहलाया। ईसवी सन पूर्व लेखों में नाना गट (कार्षापण) के नाम से उल्लिखित है। इन सिक्कों के परीक्षण से ज्ञात होता है कि गर्म धातु को पीट तथा अमुक आकार को तैयार कर कारीगर उल पर मुद्रा चिन्ह दिया करता था। इनकी निर्माण शैली के कारण ही सन् 1835 ई. में प्रिसेप ने भारत के प्राचीनतम् सिक्के को पंचमार्क ( पंच से निशान बनाना) का नाम दिया गया है। उसी कारण 'आहत सिक्का या चिन्हित संज्ञा से नया नामकर किया गया है। भारत में अधिकांश संख्या से चाँदी के आहत सिक्के (कार्षापण) उपलब्ध हुए हैं, स्मृति ग्रन्थ में निम्न पंक्ति मिलती है।

कार्षापण के लिए चाँदी का साधन क्या था, इस विषय में विद्वानों में मतभेद है। पश्चिमोत्तर प्रदेश में ईरान से चाँदी का आयात हुआ होगा। इसमें सन्द नहीं किया जा सकता है, परन्तु कार्षापण तो समस्त भारत में प्राप्त हुआ है। अतएव सिक्कों की च

की उपलब्धि का प्रश्न सम्मुख आ जाता है। एक विचारधारा के इतिहासज्ञ भारतीय चाँदी को हा कार्षापण का साधन मानते हैं। बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में चाँदी की खानें होगी, जिन प्रयोग सिक्कों के लिए किया जाता था। बिहार के भागलपुर तथा मुंगेर के भू-भाग से आरजेन्टिकेरस सीसा खान से निकलता था। जिससे चाँदी सिक्कों के लिए तैयार की जाती थी। अतः इसे विदेशी साधन मानना उचित न होगा। 16 चाँदी के कार्षापण (जिनकी होल 56 ग्रेन थी) 144 ग्रेन तौल वाले 16 ताँबे के पण बराबर मूल्य में समझे जाते थे। साधारणतया आहट सिक्के 52 रत्ती के होते हैं, किन्तु भीर टीले से प्राप्त सिक्कों की तौल 32 रत्ती मिलती है। सिक्कों के प्रचलन से भी तौल में कमी हो जाती है।

सिक्के की प्रारम्भिक तिथि

भारतवर्ष में मुद्रा - उत्पत्ति का विषय विवादास्पद है। विदेशी लेखक लिडिया या वैक्ट्रिया के सिक्कों से कार्षापण की उत्पत्ति बतलाते हैं अर्थात् ईसा पूर्व पाँचवी सदी के पश्चात् भारतीय सिक्कों का प्रचलन हुआ। भारतवर्ष में पश्चिमोत्तर प्रदेश की खुदाई में आहत सिक्के सिकन्दर की मुद्रा में मिले हैं, जो पूर्व- मौर्यकालीन है। उन्हीं को मौर्य शासकों ने प्रचलित किया। काशिका के अनुसार नन्द राजाओं ने माप-तौल की प्रणाली निकाली "नन्दों क्रमाणि मानानि।' इससे प्रकट होता है कि व्यापार की सुविधा के निमित्त माप-तौल के साथ-साथ सिक्के निर्माण की प्रणाली का आरम्भ नन्दों ने किया। उनके पश्चात् भारतीय शासक उसी का अनुसरण करते रहे। अतएव सिकन्दर या डिथोडोट्स के सिक्कों के साथ आहत सिक्कों की उपलब्धि स्वाभाविक है। उससे यह अर्थ नहीं निकलता कि यूनानी सिक्कों का अनुकरण भारतवासियों ने किया था। यह स्पष्ट है कि भारतीय यूनानी सिक्के ठप्पे की प्रणाली द्वारा निर्मित हुए थे, किन्तु अवन्ति में मालव-जाति ठप्पे का व्यवहार उससे पूर्व जानती थी। अतः ईसा पूर्व सदी से आहत सिक्के भारत में अवश्य प्रचलित हुए होंगे।

बाह्मण ग्रन्थों में शतमान 100 रत्ती का उल्लेख है। अतएव कम से कम ईसा पूर्व 800 वर्ष में सिक्कों का प्रचलन भारत में था। यही कारण है कि भारत की चिन्हित मुद्रायें संसार में प्राचीनतम समझी जाती हैं।

संसार में खुदाई के आधार पर भी इन सिक्कों की तिथि का निर्णय सम्भव हो पाया है। गंगा की घाटी में एक प्रकार की मिट्टी के पात्र मिले हैं, जिन्हें उत्तर भारतीय काले लेप वाले पा कहते हैं।

यदि, यूनानी तथा पंचमार्क (पण ) का तुलनात्मक अध्ययन किया जाये तो पता चलता है कि- 

(अ) पंचमार्क (चिन्हित ) सिक्कों का कोई निश्चित आकार न था। उनके नाम के भी स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलते। उनका निर्माण भारतीय तौल-पद्धति पर आधारित था। आहत सिक्कों पर अधिक चिन्ह दिखायी पड़ते हैं। किसी प्रकार के सुव्यवस्थित आकार का अभाव है। उन सिक्कों पर मुद्रा लेख का अंकन अभी तक ज्ञात नहीं है। अतएव इनकी तिथि यूनानी सिक्कों के पूर्व की अवश्य है।

(ब) यूनानी राजाओं ने जितने सिक्के भारत में प्रचलित किये, उनको कलात्मक ढंग से तैयार किया जाता था। चाँदी की मुद्रायें गोलाकार तथा तॉंब की मुद्रायें वर्गाकार थी। जिन पर देवी-देवता तथा राजाओं की मूर्तियाँ अंकित थीं। सबसे अधिक विशेषता यह थी कि उन पर यूनानी भाषा में लेख खुदे थे। कलान्तर में उन पर भारतीय प्रभाव पड़ा।

लेख सहित सिक्के

विदेशी लेखक इस विष पर बल देते हैं कि भारत में यूनानी सिक्कों पर ही सर्वप्रथम लेख अंकित किया गया। कुछ कार्षापण लेखमुक्त भी हैं, किन्तु अधिकांश मुद्रा लेख रहित हैं। इस कारण हम यह निर्णय नहीं कर सकते कि कार्षापण यूनानी सिक्कों के अनुकरण थे। कनिंघम की सीमान्त प्रवेश में दो प्रकार के सिक्के प्राप्त हुए थे लेखयुक्त तथा लेखरहित। भारतीय सिक्कों का इतिहास यह बतलाता है कि एरण सिक्के पर 'धमपालस' अंकित था। उजेनीय शब्द के सिक्के पर पढ़ा गया है। तक्षशिला के समीप खरोष्ठी में 'हिरणश्रयें' सिक्कों पर अंकित हैं। ये पटलेव की मुद्रा सदृश हैं। अतएव लेख अंकन के आधार पर कार्षापण को यूनानी सिक्कों का अनुकरण समझना युक्तिसंगत नहीं है। प्राचीन श्रेणियाँ ठप्पे का प्रयोग करती थीं और तक्षशिला के समीपवर्ती स्थानों में दोहरे ठप्पे से निर्मित सिक्के मिले हैं। इन सब कारणों से कार्षापण अति प्राचीन सिक्का माना जाता है।

कार्षापण भारत का राष्ट्रीय सिक्का था, जिसका प्रचलन देश के प्रत्येक कोने में था। अतः देश के विभिन्न स्थानों की खुदाई से पर्याप्त संख्या में काषार्पण उपलब्ध हुए हैं। उनमें चिह्नों की विभिन्नता के अतिरिक्त मूलतः कोई अन्तर नहीं दिखायी पड़ता।

(1) उत्तर प्रदेश

1. कौशाम्बी ढेर ( इलाहाबाद जिला)- इसमें पूर्व मौर्य तथा मौर्यकालीन सिक्के वर्तमान हैं। तौल 80 ग्रेन,

2. पैला ढेर (खेरी जिला ) - इसमें 1245 सिक्के थे। उसमें 42 ग्रेन के सिक्के अधिक हैं।

3. मिर्जापुर एवं गाजीपुर ढेर।
4. अयोध्या ढेर जिसमें 500 आहत सिक्के मिले हैं।

(2) मध्य प्रदेश-

1. बेसनगर ( बिदिसा ),
2. एरण ( सागर जिला ),
3. उज्जयिनी ( मालवा ),
4. कोसल (महाकोशल) छोटी तौल तथा बड़ा आकार।

(3) राजपूताना-

1. नागरी (चितौरगढ़),

2. जयपुरी ढेर (3175 सिक्कों का ढेर )।

(4) महाराष्ट्र प्रदेश-

1. कोल्हापुर ढेर।

(5) आन्ध्र प्रदेश-

2. हैदराबाद ढेर ( वारंगल तथा करीमनगर के समीप )।

(6) बिहार प्रदेश-

1. मछुआ टोली ढेर,
2 गोलकपुर,
3. गोरहवाघाट ( भागलपुर जिला ),
4. बेलवा ढेर (सारन जिला ),
5. पाटलिपुत्र ढेर
6. मसौढ़ी ढेर (पटना जिला 254 सिक्के),
7. बोधगया ( गया जिला )।

(7) मद्रास प्रदेश-

1. त्रिचनापल्ली ढेर
2. कोयम्बटूर जिले का ढेर।

(8) पश्चिमोत्तर प्रदेश-

1. मीर नामक टीला से तक्षशिला के ढेर में यूनानी सिक्के (1167 सिक्के) भी मिले हैं,
2. पेशावर ( 61 सिक्के एक समान),
3. रावलपिंडी।

(9) पंचाल प्रदेश-

1. कांगड़ा ढेर ( इसके साथ अंतिमाकस तथा मिलिंद के सिक्के प्राप्त)।

(10) अफगानिस्तान ढेर-

इन समस्त ढेरों के परीक्षण से ज्ञात होता है कि आहत सिक्कों के चिन्हों में भिन्नता है। सभी स्थानों पर एक चिन्ह तथा निश्चित संख्या में उनकी स्थिति नहीं है। इन सिक्कों का एक सा आकार नहीं हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सिक्के अण्डाकार हैं तथा अर्द्ध कार्षापण के बराबर हैं। कुछ सिक्कों का गोलाकार आकार के है, किन्तु उन पर चिन्ह नहीं हैं, परन्तु इस प्रकार की भिन्नताओं की उपस्थिति में भी समस्त भारत के आहत सिक्के मूलतः एक ही हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि सम्पूर्ण भारत में एक ही प्रकार का सिक्का प्रचलित था। सांस्कृतिक क्षेत्र में भारत एक इकाई है। भौगोलिक दृष्टि से विभेद होते हुए भी भारत में एकता की भावना है।

आहत सिक्कों (पंचमार्क) के चिन्ह तथा आकृति - अंग्रेजी भाषा में इस सिक्के का नाम पंचमार्क रखा गया क्योंकि इन पर चिन्ह बने दिखायी पड़ते हैं। इन चिन्हों के अंकन का क्या कारण था, किसके द्वारा चिन्ह लगाया गया था। चिन्हों की भिन्नता का क्या तात्पर्य था? आदि प्रश्नों की जटिलता के कारण इनके वास्तविक स्वरूप का परिज्ञान कठिन हो जाता है। यह तो निश्चित है कि सिक्कों के निर्माण के समय चिन्हों के मुहर लगाये गये होंगे तथा सत्ता के आदेशानुसार यह मानना उचित न होगा कि समय-समय पर विभिन्न व्यक्तियों ने सिक्कों पर चिह्न लगाये थे। इन कारणों से भारतवर्ष में उपलब्ध आहत सिक्कों का कार्यक्रम निश्चित करने में सफलता नहीं मिली है।

अंकित चिह्नों के परीक्षण से ज्ञात होता है कि अग्रभाग पर चिह्नों की अधिकता है। पाँच के समूह में चिह्न मिलते हैं। दूसरे शब्दों में अधिक संख्या चिन्ह वाले भाग को अग्र या ऊपरी भाग मान लिया गया है। पृष्ठभाग पर चार या उससे कम समूह में चिह्न दिखाई पड़ते हैं।

चिह्नों का वर्गीकरण

आहत सिक्कों पर अंकित चिन्हों के आधार पर भी उनका विभाजन किया जाता है। चिह्नों की जानकारी वर्गीकरण में सहायता करती है।

 

(अ) साधारण आकृति-

1. सूर्य की आकृति,
2. षडर चक्र,
3. वृत्त तीन वाण तथा य अक्षर सहित,
4. पर्वत कभी अर्धचन्द्रमा, मोर, कुत्ता आदि ऊपरी भाग पर स्थित,
5. वेदिका में (शाखाये सहित पवित्र वृक्ष),
6. स्वास्तिक,
7. नन्दीपाद,
8. उज्जयिनी चिह्न,
9. स्तूप - वृक्ष या पशु सिरे भाग पर।

(ब) पशु आकृति - हस्ति, नन्दी, कुत्ता, खरगोश, भेड़िया, गैंडा, बिच्छू, शेर, अश्व, मछली, मेंढक, सूर्यं।

(स) पक्षी - मोर।
(द) आयुध - चक्र, धनुष, बाण।

(य) ज्यामिति आकृति - एक या अधिक ( तीन ) मनुष्य की आकृतियो का समूह इन्हीं चिह्नों में से समूह में मिलाकर पाँच चिन्ह अग्रभाग पर दिखायी पड़ते हैं। प्रायः चिह्नों का मिलान सर्वत्र ही पाया जाता है।

1. सीमान्त प्रदेश।
2. गंगाघाटी एटा, लंकिसा, बलिया, चाइबासा, मेदिनीपुर (बंगाल)
3. दक्षिण भारत - कोल्हापुर, त्रिचनापल्ली।
4. राजपूताना तथा मालवा।

5. पश्चिमी भारत - झालरापाटन, अरावली, विन्ध्या से प्राप्त सिक्कों के परीक्षण तथा चिह्नों की समानता से सुझाव रखा जाता है कि एक ही शासन में सम्भवतः मौर्य युग में उन सिक्कों का प्रचलन हुआ होगा।

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पाँच चिह्न - उपर्युक्त चिन्हों को मिलाकर, कई समूह बनाकर सिक्कों को अंकित किया गया था। टाराइन चिन्ह के साथ अनेक समूह देखे जाते हैं। सूर्य बिन्दुयुक्त, वृत्त, तीन टाराइन चिह्न समूह (तीन बाण या नन्दी मुख सहित ) हस्ति तथा वेदिका में वृक्ष के चिन्ह बार-बार अंकित किये गये हैं। इन पाँच चिह्नों का समूह तथा अग्रभाग में सीधा सम्बन्ध स्थापित हो गया था, दो सूर्य आकृति बिन्दुयुक्त वृत तीन बाणों को दो भिन्न-भिन्न समूह तथा टाराइन (गौमुख 4 के साथ ) को मिलाकर पाँच का समूह बन जाता है, पाँच चिन्हों सहित कार्षापण को सुन्दरता के साथ तैयार किया गया था। भली-भाँति चिह्नों का अंकन दिखायी पड़ता है। इनमें जन्तुओं के वर्ग से चिह्नों का चुनाव किया गया होगा। कुछ प्रसिद्ध भारतीय चिह्न स्वास्तिक उज्जयिनी चिह्न, नन्दपाद का अभाव सा है, जिन्हे अन्य भारतीय मुद्राओं पर देखते हैं।

ब्राह्मण चिह्नों को बौद्धों ने कालान्तर में अपना लिया। इन चिह्नों के विवेचन से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अमुक सिक्का बौद्धों ने प्रचलित किया। यह सुझाव उचित होगा कि सिक्कों को तैयार करते समय सुनार ने प्रचलित चिह्नों द्वारा उन्हें अंकित किया था।

(1) पाँच चिह्नों वाले सिक्के के पृष्ठभाग पर एक ही चिह्न वर्तमान है, स्यात् वह टकसाल का चिह्न है।

(2) दूसरे वर्ग में चार चिह्न अग्रभाग पर बराबर मिलते हैं।

(3) सूर्य, षडर चक्र, नन्दी, गमला में वृक्ष ( अन्य वर्ग में पाँच चिह्न समूह ) दिखायी पड़ते है। ऊपरी चार स्थित रूप में तथा पाँचवा बदलता रहता है।

(4) तीन चिह्न समूह स्थित हैं। सूर्य, षडरचक्र तथा दो हाथी बदलते रहते हैं।

(5) पाँचवे वर्ग में दो स्थिर हैं, किन्तु तीसरा, चौथा, पाँचवा बदलते दिखायी पड़ते हैं। आहत सिक्कों के पृष्ठ भाग पर तीन या कभी दो चिह्न दृष्टिगोचर होते हैं, किन्तु इतने घिस गए होते हैं कि स्पष्टतया ज्ञात नहीं होते। कुछ चिह्नों को छोड़कर अधिकतर पृष्ठ भाग पर छोटे चिन्ह (एक या दो ) हैं। सूर्य, पर्वत, टाराइन तथा मनुष्य का समूह आदि चिन्ह मिलते हैं।

आकार,

सिक्कों का कोई निश्चित आकार नहीं था। छोटे-मोटे गोल आकार के जितने सिक्के मिले हैं, उन पर चिन्ह घिस गया है। पतले तथा चार कोने, पाँच या छः कोने वाले सिक्कों पर चिन्ह स्पष्टता अंकित है। तक्षशिला की खुदाई से कडानुमा चाँदी के सिक्के प्राप्त हुए हैं जितने ऊपरी गोल भाग पर अधिक चिन्ह हैं। गोलार्ध में कम चिन्ह दिखायी पड़ते हैं। पतले तथा बड़े आकार के सिक्के सबसे पहले प्रचलित किए गये तथा मोटे एवं छोटे सिक्के कालान्तर में तैयार हुए। यूँ तो सभी आकार की मुद्राओं पर कुछ समान रूप के चिन्ह अंकित हैं, परन्तु सबसे पूर्व के सिक्के पर जो चिन्ह आहत हुए, वे छोटे तथा मोटे सिक्कों पर नहीं दिखायी पड़ते।

सिक्के तैयार करने की विधि

चिन्हित सिक्के कई प्रकार के मिलते हैं लम्बा, चपटा, चतुर्भुज, चौकोर, गोलाकार, पंच या षटकोण सहित। सर्वप्रथम चाँदी की छड़ को काट कर सिक्के तैयार किये जाते थे। जिसे छड़नुमा (bent bar coins) सिक्के कहते हैं और उनमें मोड़ रहता था। कालान्तर में छड़ों को पीटकर चपटा कर दिया जाता था और उन पर चिन्ह अंकित किये जाते थे। पीटने के कारण सिक्कों का आकार सुनिश्चित न रहता था तथा वे भद्दे हो जाते थे। तीसरे प्रकार की शैली कुछ वैज्ञानिक थी। चाँदी या ताँबे के पत्थर को पतला बनाकर एक विशेष आकार (गोल, चौकोर ) के छोटे टुकड़े काट लिए जाते थे। उनकी तौल 32 ग्रेन रक्खा जाता था और अधिक होने पर काट लिया जाता, जिस कारण आकार बदल जाता था। तत्पश्चात् उन पर चिन्ह लगाया जाता था। इसलिए सिक्के सुन्दर आकार के नहीं रह जाते थे। सर्वप्रथम पतली चादर तथा बाद में मोटी चादर से काटकर सिक्के बनने लगे।

इस ढंग के कार्षापण किस स्थान पर तैयार किए जाते थे, यह कहना कठिन है। ऐसे कार्षापण अनगिनत संख्या में उपलब्ध हुए हैं, इस कारण यह सुझाव रखा जा सकता है कि भारत में सर्वत्र इस रीति को काम में लाया जाता होगा।

इस आहत ( पीटना ) प्रणाली के अतिरिक्त सिक्का ढालने की क्रिया भी ज्ञात थी। सांचे में नली द्वारा गली धातु डाल दी जाती थी और उस सांचे में विभिन्न चिन्ह बने रहते थे। ठण्डा होने पर इच्छित आकार-प्रकार का सिक्का तैयार हो जाता।

निर्माणकर्ता

विद्वानों से मतभेद रहा है कि कार्षापण का निमार्णकर्ता कौन था? सिक्के किस अधिकारी की आज्ञा से तैयार किये जाते रहे। मौर्यकाल से पूर्व भारत में कोई ऐसा साम्राज्य स्थापित न हो सका जो इस दिशा में ध्यान देता। देश की समृद्धि व्यापार पर निर्भर थी तथा व्यापार की उन्नति सिक्के पर प्राचीन भारत में व्यापार श्रेणी या निगम संस्थाओं के हाथ में था। राष्ट्र का सम्पूर्ण जीवन एवं वैभव व्यापारिक संस्थाओं की समुन्नति पर निर्भर था। साहित्य तथा लेखों से इस प्रकार की श्रेणियों का पर्याप्त विवरण मिलता है।

सम्भवतः कार्षापण पर चिन्हों का अंकन श्रेणियाँ करती थी। यही कारण है कि सिक्कों पर एक सा चिन्ह नहीं मिलता। श्रेणियाँ के अतिरिक्त सुनार भी कार्षापण तैयार करते थे। कालान्तर में शासक वर्ग ने इस कार्य को अपने अधिकार में ले लिया। जो भी हो इसके मूल कारणों पर प्रकाश डालना कठिन है। मौर्यकाल से पूर्व श्रेणी तक सर्राफ सिक्के तैयार करने के लिए धातु को ले जाता और सीमित संख्या में सिक्के तैयार करता था। उन सिक्कों पर श्रेणी की मुहर रहना नितान्त आवश्यक था ताकि जनता उसे ग्रहण कर सके।

यद्यपि आहत सिक्कों की प्राचीनतम तिथि का उल्लेख किया जाता है, परन्तु मौर्य युग के बाद इनके प्रचलन में कठिनाई आती गई। मौर्य युग तक समस्त भारत में मूलतः एक ही प्रकार के सिक्के प्रचलित थे। कौटिल्य इन्हें रूप्य का नाम देता है। यानी जिस पर चिन्ह खुदे थे। इसी कारण पदाधिकारी का नाम रूप्याध्यक्ष था। महावग्ग में उपालि का उल्लेख है कि चिन्ह अंकन के कारण उपालि की आँख (सिक्कों के देखने से ) खराब हो जाने की सम्भावना है।

राजकीय अधिकार

अर्थशास्त्र (1-12 ) ने वार्ता को राजकीय अभिवृद्धि का कारण माना है। इस कारण सिक्के के प्रचलन पर भी राजकीय अभिवृद्धि का कारण माना है। इस कारण सिक्के के प्रचलन पर भी राजकीय अधिकार होना चाहिए अर्थात् राजा की निगरानी में ही सिक्कों का निर्माण होना चाहिए। मौर्यकालीन सिक्कों के परीक्षण से यह स्पष्ट हो जाता है। साम्राज्य वृद्धि के साथ आर्थिक दशा के सुधार का प्रश्न भी सामने था। अतएव मौर्य युग में जनता की आर्थिक स्थिति को सामने रखकर सिक्कों का निर्माण होने लगा है। यही कारण है कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र (2-12) में सर्वप्रथम टकसाल का उल्लेख आया है। लक्षणाध्यक्ष मुद्रा पर चिन्ह लगाया करता था। "तीन अर्द्ध वृत्ताकार पर्वत एवं अर्द्ध चन्द्रमा" मौर्य चिन्ह समझा जाता है। अतएव इस चिन्ह वाले आहत सिक्के मौर्ययुग के माने गये हैं। इस चिन्ह के अतिरिक्ल टकसाल का स्वामी अन्य प्रकार की राजकीय आज्ञा का पालन करता था। विभिन्न तौल तथा मिश्रण की प्रक्रिया पर राजाज्ञा को भी करना पडता था।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
  2. प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  4. प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
  5. प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  7. प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
  8. प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
  9. प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  12. प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
  13. प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
  14. प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
  15. प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
  16. प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
  17. प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
  18. प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  20. प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
  21. प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
  22. प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
  23. प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
  24. प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
  25. प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
  26. प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
  27. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
  31. प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
  32. प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
  33. प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
  34. प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
  35. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  37. प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
  38. प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
  39. प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
  40. प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  43. प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
  44. प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  45. प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
  46. प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
  48. प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  49. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  51. प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
  55. प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  56. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
  60. प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
  62. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
  63. प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
  67. प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
  68. प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
  69. प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  70. प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
  71. प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
  72. प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  74. प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
  75. प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
  77. प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
  78. प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
  79. प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
  80. प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
  81. प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
  84. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  85. प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
  86. प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
  87. प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
  88. प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
  89. प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
  90. प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
  91. प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
  92. प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
  93. प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  94. प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
  95. प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  96. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
  98. प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
  99. प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
  100. प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
  101. प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
  102. प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  103. प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
  104. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
  106. प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  107. प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  108. प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
  109. प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
  113. प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  114. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
  115. प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।

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